Wednesday, 10 October 2012
Wednesday, 7 March 2012
होली वसंत ऋतु में मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण भारतीय त्योहार है! होली भारत का अत्यंत प्राचीन पर्व है जो होली, होलिका या होलाका नाम से मनाया जाता था! वसंत की ऋतु में हर्षोल्लास के साथ मनाए जाने के कारण इसे वसंतोत्सव और काम-महोत्सव भी कहा गया है... रंगो का उत्सव... न केवल आम जीवन में बल्कि इस उत्सव का महत्व रामायण व महाभारत काल से ही रहा है! मिथिलांचल में तो होली का खास महत्व है.. वसंत के आगमन के साथ ही होली की रंगत छा जाती है.. डफली की तान पर परंपरागत फाग गीत व जोगीरा के शोर परवान चढ़ने लगते हैं... जोगीरा सा रा रा..! दशरथ के लाल खेले होली..! अवध में होली खेले रघुवीरा..! कान्हा गोपियों के संग खेले होली..! डफली की थाप पर इन परंपरागत गीत एक माह पहले से ही गांवों में होली के दस्तक का आभास करा देती है ! विभिन्न रंग बिरंगे वेशभूषा में डफली बजाते लोगों की टोली घर घर घूम कर फाग गीतों के माध्यम से होली पर्व का अहसास कराते है... लेकिन धीरे-धीरे जोगीरा के शोर थमने लगे है.. फाग गीत भी सिर्फ ग्रामीण इलाकों में ही सुनने को मिलते है ! जोगीरा सा रा. रा.. होते ही फाग का एहसास होने लगता है! शहर में होली अब मदहोशीं हुड़दंग, अल्हड़पन, मस्ती व अश्लील गीतों तक सीमट कर रह गया है ! होली के नाम पर छक कर पीना व अश्लील गीतों की धून पर थिरकना ही होली की नई परंपरा बन गई है! फाग गीतों का अपना एक अलग इतिहास रहा है! मिथिलांचल की संस्कृति का एक खास हिस्सा फाग गीत भी रहा है ! कबीर दास हो या सूर दास या फिर राष्ट्रकवि दिनकर.. सभी अपनी रचनाओं में फाग गीत को जगह दी है ! देश के विभिन्न इलाकों में फाग गीत को अलग अलग नामों से जाना जाता है ... लेकिन मिथिलांचल में इसे फगुआ गीत के नाम से जाना जाता है.. हालांकि लोग इसे जोगीरा के नाम से ज्यादा सुनते, देखते, बोलते व बताते है.. जोगीरा के शब्दों को जोड़ तोड़ कर वाक्य बनाया जाता है ! इसमें हास्य व व्यंग्य का मिश्रण रहता है.. आम तौर पर बोले जाने वाले शब्द हो या फिर बतकही, लोग इसे अपने अंदाज में बयां कर लोगों का मनोरंजन करते रहे है ! जोगीरा के स्वर में डंफ की बात का भी विशेष महत्व है.. लोग बताते है कि डंप बजाने से ठंड समाप्त होती है.. बसंत पंचमी के दिन से ही जोगीरा के सूर व डंफ की ताल सुनाई देने लगती है! शहरी इलाकों में तो इसका वजूद ही समाप्त हो गया है, गांवों में अब भी जोगीरा के गूंज सुनाई पड़ती है !!Tuesday, 28 February 2012
टीम अहम या दिग्गज ???
जिन महान क्रिकेटरों पर हम एक युग से फख्र करते रहे हैं, उनकी ढलती उम्र और गिरते फॉर्म ने हमें दुविधा में डाल दिया है कि उनके प्रति अब हमारा नजरिया क्या हो? कप्तान महेंद्र सिंह धोनी ने सचिन तेंडुलकर, वीरेंद्र सहवाग और गौतम गंभीर की फील्डिंग क्षमता पर टिप्पणी कर टीम में उनकी भूमिका पर नए सवाल खड़े कर दिए हैं !
ऑस्ट्रेलिया में जारी त्रिकोणीय श्रंखला में अपनाई गई रोटेशन पॉलिसी के बचाव में धोनी ने कहा कि वे तीनों अच्छे फील्डर हैं, लेकिन ऑस्ट्रेलिया के बड़े मैदानों पर कुछ धीमे साबित होते हैं, इसलिए बतौर कप्तान उनकी प्राथमिकता है कि चुस्त सुरेश रैना या रोहित शर्मा को टीम में रखें ! दिग्गज बल्लेबाज अगर अपनी शोहरत के मुताबिक बैटिंग करते, तो शायद सुस्त फील्डिंग का सवाल खड़ा नहीं होता ! मगर हकीकत यही है कि पहले टेस्ट और फिर वन डे सीरीज में उनका योगदान निराशाजनक रहा है !
धोनी अक्सर कहते रहे हैं कि भारतीय खिलाड़ी उस रूप में खेलते हैं, जो उन्हें रास आता है ! विपक्षी टीम के मुताबिक वे अपने खेल को नहीं ढालते ! यह कड़ा बयान है, लेकिन संभवत: एक यथार्थ है ! इसी तरह भारत में अक्सर खिलाड़ियों से लगाव की भावना टीम की जरूरतों पर तरजीह पा जाती है। अगर सीनियर खिलाड़ी फॉर्म में नहीं हों, तब भी हर हाल में उन्हें अंतिम ग्यारह में क्यों रखा जाना चाहिए? इस सिलसिले में हम ऑस्ट्रेलिया से कुछ सीख जरूर ले सकते हैं !
अंतत: वहां के चयनकर्ताओं ने फॉर्म से बाहर रिकी पोंटिंग को वन डे टीम से बाहर करने का साहस दिखाया है ! इससे ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेट में पोंटिंग के योगदान पर कोई आंच नहीं आती ! इसी तरह अगर मुकाबले की जरूरत के मद्देनजर किसी भारतीय दिग्गज खिलाड़ी की टीम में जगह नहीं बनती या कप्तान को कोई युवा खिलाड़ी ज्यादा उपयोगी लगता हो, तो इस पर विवाद क्यों खड़ा होना चाहिए? अगर धोनी ने यह बात बेलाग कह दी है, तो उसे टीम में मतभेद या सीनियर खिलाड़ियों के प्रति अपमान भाव के रूप में नहीं, बल्कि टीम की आवश्यकताओं के संदर्भ में देखा जाना चाहिए !
Subscribe to:
Comments (Atom)

