' एक स्वस्थ समाज, जिसमे उंच - नीच, जात - पात तथा भेद - भाव की दुर्गन्ध नहीं बल्कि जिसमे सच्चाई, समानता तथा प्रेम की सुगंध हो ! एक रौशन समाज, जिसके गुणों की रौशनी से आगे आने वाली पिरियां कभी रास्ता न भटके ! जिसके हर एक मानव में मानवता हो ! उस मानव में पत्थर का नहीं बल्कि एक नाजुक धरकता हुआ दयालु दिल हो, जिसमे दुसरो की मजबूरी, पीरा तथा दुःख - दर्द की गर्मी से पिघलने की क्षमता हो ! शातिर नहीं, एक सुलझा हुआ दिमाग हो ! जिसके पैर किसी को रौन्धकर आगे बढ़ने की हिम्मत न रखते हो ! जिसके हाथ दुसरो को गिराने की बजाय, गिरे हुए को सहारा देकर उठाने तथा क्षमतानुसार मदद करने को तैयार रहें !'
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